त्रिपुरा में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर रह रहे लोगों ने कहा ‘हम डर के साये में रातें बिता रहे हैं’-ग्राउंड रिपोर्ट

पांच अगस्त, 2024 को बांग्लादेश में शेख हसीना सत्ता से बाहर हुईं.

उसके बाद से बांग्लादेश से लगातार ऐसी ख़बरें आती रही हैं जिसमें भारत के साथ उसके संबंधों की तल्खी ज़ाहिर होती रही है. ऐसे में भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में भी तनाव पसरा दिखता है. भारत-बांग्लादेश के त्रिपुरा से लगी सीमा पर स्थित है कालीपुर गांव. महज़ 40 परिवार की आबादी वाले गांव के अधिकतर लोगों के कपड़े लोहे की तार की बनी फेंसिंग पर दिखते हैं. पाँच अगस्त से पहले कालीपुर के लोगों के जीवन में सबकुछ सामान्य था लेकिन अब यहां बीएसएफ की कड़ी निगरानी है और डर का माहौल है.

शाम के पांच बजने में अभी कुछ मिनट बचे हैं और कालीपुर गांव के रहने वाले पुतुल मालाकार अपने सभी काम निपटा कर घर पहुंचने की जल्दी में है. बीते पांच अगस्त से पहले पुतुल मालाकार के जीवन में घर जल्द लौटने की इतनी चिंता कभी नहीं रही. इस बदलाव और भय के बारे में पुतुल मालाकार कहते है, “हमें बॉर्डर इलाके में काफ़ी मुश्किल में रहना पड़ रहा है. अभी बहुत तनाव है. हम डर के साये में रात बीता रहें है. किस समय यहां गड़बड़ी फैल जाए या फिर उस तरफ़ से कोई आकर हम लोगों पर हमला कर दें उसी डर में अब जी रहे है.”

स्थानीय ग्रामीणों का क्या कहना है?

भारत और बांग्लादेश का सीमावर्ती गांव कालीपुर
कालीपुर गांव के लोगों के कपड़े फेंसिंग पर दिखते हैं

इस बदलाव और भय के बारे में पुतुल मालाकार कहते है,” हमें बॉर्डर इलाके में काफ़ी मुश्किल में रहना पड़ रहा है. अभी बहुत तनाव है. हम डर के साये में रात बिता रहें है. किस समय यहां गड़बड़ी फैल जाए या फिर उस तरफ़ से कोई आकर हम लोगों पर हमला कर दें उसी डर में अब जी रहे है.”

भारत की सीमा पर लगी फेंसिंग अब यहां के ग्रामीणों के लिए एक तरह का सुरक्षा कवच मानी जा रही है. कालीपुर गांव में मौजूदा हालात कुछ ऐसे है कि यहां कोई भी अजनबी बीएसएफ़ को पूछे बिना नहीं आ सकता. गांव में प्रवेश से पहले चेक पोस्ट पर बीएसएफ़ के जवानों का कड़ा पहरा है. यहां आने-जाने वालों पर सीसीटीवी की भी निगरानी है. इस तरह की सुरक्षा बंदोबस्त के बारे में 67 साल के पुतुल मालाकार कहते हैं, “जब से बांग्लादेश में गड़बड़ी हुई है तब से बीएसएफ़ ने यहां काफी कड़ाई कर दी है. पांच महीने पहले इस तरह का माहौल नहीं था.” पुतुल बताते हैं, “बीएसएफ़ ने हमसे भी कहा है कि ज्यादा रात को बाहर आना-जाना न करें. मैं शाम ढलते ही घर आ जाता हूं. अब गांव में अगर बाहर से कोई रिश्तेदार आता है तो उसका पहचान पत्र पहले बीएसएफ़ के चेक पोस्ट पर दिखाना होता है.” “बांग्लादेश में गड़बड़ी के कारण हम अपने खेतों में भी नहीं जा पा रहें है. फेंसिंग के उस तरफ गांव के आधे से ज़्यादा लोगों की खेती की ज़मीन है. पर अब वहां कोई नहीं जाता.” बांग्लादेश के साथ पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की कुल 1879 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं है. इन चार राज्यों में त्रिपुरा के साथ 856 किलोमीटर का सबसे बड़ा बॉर्डर है. त्रिपुरा के केवल उनाकोटी जिले में 73 किलोमीटर का अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर है जहां कालीपुर की तरह 15 से अधिक गांव बसे हैं.

‘विभाजन के दिनों जैसे हालात’

सीमावर्ती इलाक़े में रहने वाले दिलीप दास
सीमावर्ती इलाक़ों के लोगों का कहना है कि हालात विभाजन के समय जैसे हो गए हैं. ये तस्वीर सीमावर्ती इलाक़े में रहने वाले दिलीप दास की है

इसी ज़िले के एक बेहद छोटे से गांव समरूरपार के रहने वाले दिलीप दास भी मौजूदा हालात से बेहद परेशान हैं. भारत-बांग्लादेश की सीमा पर लगी फेंसिंग के महज कुछ मीटर दूरी पर अपने परिवार के साथ रहने वाले 48 साल के दिलीप दास की मानें तो मौजूदा हालात बांग्लादेश के साथ एक नया विभाजन जैसा है. वो कहते हैं, “यह दो देशों के बीच एक तरह का नया विभाजन है. इसका हम पर काफी असर पड़ा है. क्योंकि हमारे बहुत सारे रिश्तेदार बांग्लादेश में अभी भी है.” दिलीप बताते हैं, “पांच महीने पहले तक हम लोगों का एक-दूसरे के यहां आना-जाना था लेकिन अब केवल व्हाट्सऐप और फेसबुक पर ख़ैरियत पूछते है.सोशल मीडिया के जरिए जानकारी मिलती है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार किया जा रहा है. इसलिए हर वक्त चिंता होती है.” भारत के बॉर्डर पर बढ़ते तनाव पर दिलीप दास कहते हैं, “अभी युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए है. अगर भारत और बांग्लादेश के बीच युद्ध हो गया या फिर वहां हमारे रिश्तेदारों पर जिस तरह अत्याचार किया जा रहा है उसकी वजह से इधर भी हंगामा हो गया तो काफ़ी मुश्किल हो जाएगी. हम बॉर्डर के पास रहते हैं, लिहाजा इस तरह की कई सारी बातों से गांव वालों के मन में डर और चिंता पैदा हो गई है.”

सीमावर्ती इलाक़े में रहने वाले नाज़मुल हुसैन
नाज़मुल हुसैन ने बताया कि लोगों के लिए बांग्लादेश में बसे अपने रिश्तेदारों से मिलना भी मुश्किल हो गया है

कुछ ऐसी ही चिंता बॉर्डर के पास बसे कालारकांदी गांव के रहने वाले नाज़मुल हुसैन को भी सता रही है. असल में नाज़मुल के कुछ रिश्तेदार बांग्लादेश में शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग के सदस्य रहे हैं. वो कहते हैं, “पहले बांग्लादेश में रिश्तेदारों से मिलने जाना बहुत आसान था लेकिन अब बहुत मुश्किल हो गया है. उस तरफ़ मेरे कई रिश्तेदार है जो अवामी लीग पार्टी से जुड़े थे. वो अब बहुत मुश्किल में पड़ गए है. काफ़ी लोग छिपे हुए हैं. कुछ लोग विदेश भाग गए हैं.” नाज़मुल के कई रिश्तेदारों ने उनको फ़ोन पर बताया है कि अवामी लीग करने वाले लोग भय के माहौल में जी रहे हैं. बीएनपी और जमात ए इस्लाम के कार्यकर्ता अवामी लीग से जुड़े लोगों पर हमले कर रहे हैं. त्रिपुरा की करीब 37 लाख आबादी में तीन लाख से ज़्यादा मुसलमान हैं. जबकि 22 लाख से अधिक बंगाली मूल के हिंदू है. इनमें अधिकतर लोगों के रिश्तेदार बांग्लादेश में हैं.

बांग्लादेशी किसानों से बात करने की मनाही

भारत और बांग्लादेश का सीमावर्ती इलाक़ा
भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में तनाव का असर दोनों देशों के सीमावर्ती इलाक़ों में भी दिख रहा है

भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर जो फेंसिंग लगी है वो केवल भारत की तरफ है. जबकि बांग्लादेश ने अपनी तरफ किसी तरह की फेंसिंग नहीं लगाई है. इस फेंसिंग से महज़ कुछ मीटर दूरी पर बॉर्डर पिलर लगे है. जीरो पॉइंट पर लगे इन पिलर और फेंसिंग के बीच भारतीय किसानों की ज़मीन है. हालांकि कई इलाक़ो में कुछ किसानों को बीएसएफ फेंसिंग की उस तरफ जाने की अनुमति दे रहे हैं. समरुरमुख के रहने वाले दुलाल कहते हैं, “हमारे गांव के कुछ किसान बीएसएफ के पास अपना पहचान पत्र जमा कर फेंसिंग के उस तरफ़ खेतों में काम करने जाते है. हम ऐसा सालों से कर रहें है. लेकिन अब बीएसएफ कड़ी निगरानी रखती है.” दुलाल बताते हैं, “शाम पाँच बजे अंधेरा होने से पहले वापस आना पड़ता है. वहां के खेतों में बांग्लादेश की तरफ से भी किसान आते है लेकिन हमें अब उनसे बात करने की अनुमति नहीं है. पहले हम एक-दूसरे से बात करते थे. हाल-चाल पूछते थे.” 1971 में बांग्लादेश के एक नए राष्ट्र बनने के बाद से ही त्रिपुरा के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं. इस छोटे से पूर्वोत्तर राज्य ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नौ महीने तक चले बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 26 मार्च, 1971 को शेख़ मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली मुक्ति वाहिनी की तरफ़ से स्वतंत्रता की घोषणा होने तक त्रिपुरा ने साथ दिया था. उस दौरान त्रिपुरा ने 16 लाख पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थियों को शरण दी थी, जो इस राज्य की 15 लाख की आबादी से भी ज़्यादा थी. भारत-बांग्लादेश की फेंसिंग के पास समरुरपार के रहने वाले गुलाब अली पुराने रिश्तों को याद करते हुए कहते है, “मेरी उम्र 70 साल की है लेकिन ऐसी परिस्थितियां पहले कभी नहीं देखी. जिस पड़ोसी मुल्क से भाईचारा और रिश्तेदारी रही है, अब मौजूदा हालात ने हम लोगों के मन में डर पैदा कर दिया है. बीएसएफ ने भी हम लोगों से थोड़ा सतर्क रहने को कहा है.”

कैलाशहर के बॉर्डर पर प्रदर्शन के बाद कारोबार ठप, लाखों का नुकसान

सीमावर्ती इलाक़े में खड़े ट्रक
दोनों देशों के बीच तनाव का असर व्यापार पर भी पड़ रहा है

त्रिपुरा की मनु नदी के किनारे बसा कैलाशहर बांग्लादेश की लंबी सीमा से घिरा है. इस शहर के बॉर्डर पर दशकों से आयात और निर्यात का बड़ा कारोबार चल रहा है. त्रिपुरा का यह दूसरा सबसे बड़ा व्यापार का केंद्र है जहां सैकड़ों लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है. लेकिन बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू लोगों पर हमले की ख़बर के बाद यहां स्थानीय संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन किया जिसके बाद इस बॉर्डर को 20 दिनों के लिए बंद कर दिया गया. कैलाशहर आयात-निर्यात व्यापारी संगठन के अध्यक्ष गौड़ चंद अधिकारी कहते हैं, “इस बॉर्डर के बंद होने से 60 से 70 लाख रुपया सरकारी राजस्व का नुकसान हुआ है.” गौड़ चंद अधिकारी कहते हैं, “यह बॉर्डर पॉइंट त्रिपुरा का एक ऐसा लैंड कस्टम स्टेशन है जहां राज्य का दूसरा सबसे ज़्यादा राजस्व संग्रह होता है. हर महीने यहां से सरकार को डेढ़ से दो करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है.” गौड़ चंद अधिकारी बताते हैं, “हमारे यहां करीब 100 परिवार है जिनकी जीविका इस बॉर्डर पर निर्भर है. कुछ दिन पहले बांग्लादेश में चिन्मय कृष्ण दास की हुई गिरफ्तारी के बाद यहां स्थानीय संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया जिसके बाद बॉर्डर को 20 दिनों के लिए बंद कर दिया गया. उस बंद के बाद से व्यापारियों को काफ़ी नुकसान हुआ है. “

सरहद पर कड़ा पहरा

उनाकोटी ज़िले की पुलिस अधीक्षक कांता जांगिड़
उनाकोटी ज़िले की पुलिस अधीक्षक कांता जांगिड़ ने बताया कि भारत और बांग्लादेश बॉर्डर पर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.

भारत-बांग्लादेश की सरहद पर बसे लोगों में मची हलचल के बीच उनाकोटी ज़िला पुलिस का दावा है कि बॉर्डर पर बीएसएफ़ के साथ पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए है. उनाकोटी ज़िले की पुलिस अधीक्षक कांता जांगिड़ ने बीबीसी से कहा,”बांग्लादेश के साथ हमारे जिले का 73 किलोमीटर का बॉर्डर लगता है जिसकी निगरानी के लिए बीएसएफ की 20 चौकियां है.” कांता जांगिड़, “जब से बांग्लादेश का मसला हुआ है या फिर उससे पहले से भी हम बीएसएफ़ के साथ में बॉर्डर इलाकों में जॉइंट पेट्रोलिंग, रात्रि गश्त तथा फ्लैग मार्च करते आ रहें है. मौजूदा स्थिति को देखते हुए अभी पेट्रोलिंग बढ़ाई गई है.” बॉर्डर पर बसे ग्रामीणों के मन में पैदा हुए भय के बारे में एसपी जांगिड़ कहती हैं, “हम ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए भी कई प्रोग्राम कर रहे हैं. लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर पैनी नजर रखी जा रही है. अगर वहां कोई सांप्रदायिक पोस्ट डालता है तो हम उसे तुरंत डिलीट करवाते हैं और संबंधित व्यक्ति पर कार्रवाई भी करते हैं.” इन तमाम सुरक्षा इंतज़ामों के बीच जहां दिलीप बांग्लादेश में रहने वाले अपने रिश्तेदारों की चिंता में बेचैन है वहीं नाज़मुल भी अब हालात सामान्य होने की उम्मीद छोड़ते दिख रहे हैं.

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